
दिव्य मोदक की पौराणिक कथा

भगवान गणेश को मोदक प्रिय होने के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है। एक बार देवताओं ने माता पार्वती को एक विशेष दिव्य मोदक प्रदान किया। इस मोदक को देखकर कार्तिकेय और गणेश दोनों इसे पाना चाहने लगे। तब माता पार्वती ने समझाया कि यह मोदक बहुत विशेष है, इसकी महक से ही अमरत्व की प्राप्ति होती है। इसे खाने से व्यक्ति सभी शास्त्रों और कलाओं में निपुण हो जाता है और ज्ञान का सागर बन जाता है।
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जब गणेशजी ने मोदक की महत्ता को सुना, तो उसे खाने की इच्छा जताई। वहीं, कार्तिकेय भी इसे प्राप्त करने की ज़िद पर अड़ गए। तब माता ने शर्त रखी कि जो पहले धर्म और श्रेष्ठ आचरण का पालन करते हुए सभी तीर्थों का भ्रमण करेगा, उसे यह मोदक दिया जाएगा। यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर सवार होकर तीर्थों की यात्रा पर निकल पड़े। जबकि गणेशजी का वाहन मूषक था, जिससे तीर्थ यात्रा करना उनके लिए कठिन था। इसलिए उन्होंने माता-पिता के सामने परिक्रमा की और उनकी स्तुति की।
गणेशजी बने प्रथम पूज्य
माता पार्वती ने यह देखकर कहा कि सभी तीर्थ यात्रा, देवताओं को प्रणाम, यज्ञ, व्रत, योग, और संयम आदि का पालन करना भी माता-पिता की पूजा के सोलहवें हिस्से के बराबर नहीं हो सकता। इसलिए, मैं यह दिव्य मोदक गणेश को अर्पित करती हूं। इसके अलावा, भविष्य में सभी शुभ कार्यों में सबसे पहले गणेशजी की पूजा होगी, और उन्हें ‘प्रथम पूज्य’ के रूप में पूजा जाएगा।
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